हर किसी को सीखनी चाहिए दिल की धकड़न लौटा लाने की सीपीआर तकनीक
सुमन कुमार
हृदय गति रुकने से होने वाली मौतों ने इस खतरनाक और जानलेवा बीमारी से बचाव के तात्कालिक उपायों के प्रति आम जनता में जागरूकता फैलाने की जरूरत को गंभीरता से सामने रखा है। ऐसे कुछ तात्कालिक उपायों में एक उपाय सीपीआर 10 तकनीक भी है।
वैज्ञानिक आधार
हममें से अधिकांश लोगों ने फिल्मों में, टीवी सीरियल्स में यह देखा होगा कि किसी को भी दिल का दौरा पड़ने पर आस-पास वाले उसकी छाती को जोर-जोर से दबाने लगते हैं। क्या ऐसा सिर्फ भावना में बह कर किया जाता है या इसका कोई वैज्ञानिक आधार है? दरअसल इसका बहुत ही मजबूत वैज्ञानिक आधार है और छाती को जोर-जोर से दबाने और मुंह से ऑक्सीजन देने की प्रक्रिया को अगर किसी प्रशिक्षित चिकित्सक से सीखा जाए तो इस तकनीक को कार्डियोपल्मोनरी रिससिटैशन यानी सीपीआर तकनीक कहते हैं।
क्या कहते हैं डॉक्टर
देश के जाने माने हृदय रोग विशेषज्ञ और हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉक्टर के.के. सीपीआर 10 तकनीक में गोल्ड मेडलिस्ट और लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड होल्डर हैं। उन्होंने बताया कि एक ऑनलाइन डॉक्टर कंसल्टेशन प्लेटफॉर्म द्वारा कराए गए सर्वे से पता चला है कि देश में 98 फीसदी लोग सीपीआर10 तकनीक के बारे में प्रशिक्षित नहीं हैं जबकि सडन कार्डिएक अरेस्ट की स्थिति में मरीज की जान बचाने की यह बेसिक तकनीक है।
पिछले दिनों दिल्ली के जाकिर हुसैन कॉलेज में हुए युवा महोत्सव के दौरान उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि कॉलेज के सभी छात्रों को अनिवार्य रूप से इस तकनीक का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए क्योंकि यह असली स्वयंसेवा होगी। उन्होंने कहा कि कार्डिएक अरेस्ट के मामले में शुरुआती 10 मिनट बेहद महत्वपूर्ण होते हैं और इतने कम समय में मरीज का डॉक्टर के पास पहुंचना लगभग असंभव होता है इसलिए यह जरूरी है कि आम जनता को इसका प्रशिक्षण हासिल हो ताकि आस-पास से गुजरता कोई भी व्यक्ति मरीज की इस तकनीक के जरिये मदद कर सके। इस तकनीक को सीखना लोगों का कर्तव्य भी होना चाहिए।
क्या है यह तकनीक
डॉक्टर अग्रवाल कहते हैं कि इस तकनीक को सीखना आसान है और इसके लिए डॉक्टर होने की जरूरत नहीं है। इस तकनीक में कार्डिएक अरेस्ट के 10 मिनट के अंदर (जितनी जल्दी हो उतना अच्छा) मरीज की छाती के ठीक बीच वाले हिस्से को अगले 10 मिनट तक जोर से दबाना होता है और दबाव देने की गति प्रति मिनट 100 बार होती है।
तो जितनी जल्दी हो सके हम सभी को इस तकनीक को सीख लेना चाहिए। न जाने आस-पास से गुजरने वाले किस व्यक्ति को हमारी जरूरत पड़ जाए। या हमें ही इसकी जरूरत हो तो करीब से गुजरता कोई व्यक्ति हमारे काम आ जाए।
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